विविध >> सुखमय जीवन के सूत्र सुखमय जीवन के सूत्रराजकिशोर
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इस पुस्तक में बताया गया है कि जीवन को इस तरह ग्रहण करो मानो वह एक दावत हो जिसमें आपको शालीनता के साथ पेश आना है......
Sukhmay Jeevan Ke Sootra
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ग्रीस के स्टॉइक दार्शनिक का दुनिया भर में सम्मान किया जाता है। ये जीवन और जगत, दोनों के बारे में गहराई से विचार करते थे। सृष्टि की रचना, उसके उद्देश्य, उसकी परिणति आदि के बारे में उनके विचारों से मतभेद कोई नई बात नहीं है, लेकिन जिस तथ्य का उनके विरोधी भी सम्मान करते हैं, वह है जीवन को कैसे जिया जाय, इस शाश्वत और कठिनतम प्रश्न का उत्तर खोजने की बेचैनी। ढेर सारा ज्ञान उपार्जित कर, दुनिया-भर की धन-सम्पत्ति जमा कर तथा दुर्लभ सत्ता और रुतबा हासिल करके भी क्या होगा, अगर हमारा जीवन सुखमय नहीं है। स्टॉइक दार्शनिक यह भी बताते हैं कि जीवन में विफलता, कष्ट, दुःख और पीड़ा को सहन करने का शिष्ट और सुन्दर तरीका क्या है। एपिक्टेटस का स्टाइक दार्शनिकों में विशिष्ट स्थान है और उनके संवादों और विचारों का सार्वकालिक महत्व है, जिन्हें इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।
एपिक्टेटस एक गंभीर विचारक और तेजस्वी शिक्षक थे। पर उनके हाथ से लिखा हुआ कुछ भी उपलब्ध नहीं है। उनके प्रिय शिष्य एरियन ने अपने शिक्षक के विचारों और संवादों को जिस पुस्तक में संकलित किया है, उसका नाम है, -द डिस्कोर्सेज’। एपिक्टेटस की विश्व-ख्याति का आधार यही पुस्तक है। इस पुस्तक में खासतौर से इन प्रश्नों पर विचार किया गया है कि जीवन में क्या मूल्यवान है और क्या मूल्यवान नहीं है, कौन-सी चीजें हमारे हाथ में हैं और कौन-सी चीजें नहीं हैं, सुखमय जीवन किसे कहेंगे, इसे कैसे हासिल किया जा सकता है तथा हमें किन चीजों को पाने की कोशिश करनी चाहिए और किन चीजों से दूर रहना चाहिए।
एपिक्टेटस की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे हमें बहुत ही सरल और स्पष्ट तरीके से जीने की कला कुंजी थमाते हैं। वे न तो हवाई बातें करते हैं और न ही हवाई समाधान सुझाते हैं। उनकी समस्त शिक्षा जीवन के ठोस संदर्भों में है और सबसे बड़ी बात यह है कि उस पर अमल करना सबके लिए संभव है। इसीलिए उनके जीवन-सूत्रों पर चलते हुए असंख्य लोगों ने स्वस्थ और सुखमय जीवन का आनंद लिया है। अपनी सीमाओं के बावजूद जीवन की उलझनों के बीच अविचलित रहने की कला सीखनी हो, तो एपिक्टेटस से बेहतर शायद ही कोई मिलेगा।
एपिक्टेटस एक गंभीर विचारक और तेजस्वी शिक्षक थे। पर उनके हाथ से लिखा हुआ कुछ भी उपलब्ध नहीं है। उनके प्रिय शिष्य एरियन ने अपने शिक्षक के विचारों और संवादों को जिस पुस्तक में संकलित किया है, उसका नाम है, -द डिस्कोर्सेज’। एपिक्टेटस की विश्व-ख्याति का आधार यही पुस्तक है। इस पुस्तक में खासतौर से इन प्रश्नों पर विचार किया गया है कि जीवन में क्या मूल्यवान है और क्या मूल्यवान नहीं है, कौन-सी चीजें हमारे हाथ में हैं और कौन-सी चीजें नहीं हैं, सुखमय जीवन किसे कहेंगे, इसे कैसे हासिल किया जा सकता है तथा हमें किन चीजों को पाने की कोशिश करनी चाहिए और किन चीजों से दूर रहना चाहिए।
एपिक्टेटस की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे हमें बहुत ही सरल और स्पष्ट तरीके से जीने की कला कुंजी थमाते हैं। वे न तो हवाई बातें करते हैं और न ही हवाई समाधान सुझाते हैं। उनकी समस्त शिक्षा जीवन के ठोस संदर्भों में है और सबसे बड़ी बात यह है कि उस पर अमल करना सबके लिए संभव है। इसीलिए उनके जीवन-सूत्रों पर चलते हुए असंख्य लोगों ने स्वस्थ और सुखमय जीवन का आनंद लिया है। अपनी सीमाओं के बावजूद जीवन की उलझनों के बीच अविचलित रहने की कला सीखनी हो, तो एपिक्टेटस से बेहतर शायद ही कोई मिलेगा।
स्वागत
ग्रीस के स्टॉइक दार्शनिक का दुनिया भर में सम्मान किया जाता है। ये जीवन और जगत, दोनों के बारे में गहराई से विचार करते थे। सृष्टि की रचना, उसके उद्देश्य, उसकी परिणति आदि के बारे में उनके विचारों से मतभेद कोई नई बात नहीं है, लेकिन जिस तथ्य का उनके विरोधी भी सम्मान करते हैं, वह है जीवन को कैसे जिया जाय, इस शाश्वत और कठिनतम प्रश्न का उत्तर खोजने की बेचैनी। ढेर सारा ज्ञान उपार्जित कर, दुनिया-भर की धन-सम्पत्ति जमा कर तथा दुर्लभ सत्ता और रुतबा हासिल करके भी क्या होगा, अगर हमारा जीवन सुखमय नहीं है। स्टॉइक दार्शनिक यह भी बताते हैं कि जीवन में विफलता, कष्ट, दुःख और पीड़ा को सहन करने का शिष्ट और सुन्दर तरीका क्या है।
स्टॉइक दार्शनिकों में एपिक्टेटस का स्थान अन्यतम है। उनका जन्म रोम साम्राज्य के पूर्वी हिस्से में स्थित फ्रीजिया नामक स्थान में सन 55 के आसपास एक दास के रूप में हुआ था। कहा जाता है कि जब वे दास थे, उन्हीं दिनों उन्हें एक ऐसी क्रूर सजा मिली थी जिससे वे लँगड़े हो गए थे। उनकी प्रखर प्रतिभा से प्रभावित होकर स्वामी एपाफ्रोडियस ने उन्हें पढ़ने के लिए रोम भेजा, जहाँ वे गाउस मुओनिअस रुफुस के शिष्य के रूप में प्रसिद्ध हुए। वहीं उन्हें दास होने से छुटकारा मिला। बाद में वे रोम के प्रसिद्ध सम्राट नीरों के मंत्री भी बने। एपिक्टेटस सन 94 तक रोम में पढ़ने का काम करते रहे। जब डॉमिशियन रोम का सम्राट बना, तो उसने अपने यहाँ के सभी दार्शनिकों और विचारकों को देश निकाला दे दिया। उन्हीं दिनों एपिक्टेटस भागकर ग्रीस के नीकापॉलिस नामक शहर में पहुँचे और वहाँ अपना स्कूल खोला। मान्यता है कि एक अनाथ बालक की परवरिश करने के लिए उन्होंने विवाह भी किया।
वहीं सन 135 से 80 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हुई।
एपिक्टेटस एक गँभीर विचारक और तेजस्वी शिक्षक थे। पर उनके हाथ से लिखा हुआ कुछ भी उपलब्ध नहीं है। उनके प्रिय शिष्य एरियन ने अपने शिक्षक के विचारों और संवादों को जिस पुस्तक में संकलिक किया है, उसका नाम है, -द डिस्कोर्सेज’। एपिक्टेटस की विश्व-ख्याति का आधार यही पुस्तक है। इस पुस्तक में खासतौर से इन प्रश्नों पर विचार किया गया है कि जीवन में क्या मूल्यवान है और क्या मूल्यवान नहीं है, कौन-सी चीजें हमारे हाथ में हैं और कौन-सी चीजें नहीं हैं, सुखमय जीवन किसे कहेंगे, इसे कैसे हासिल किया जा सकता है तथा हमें किन चीजों को पाने की कोशिश करनी चाहिए और किन चीजों से दूर रहना चाहिए।
एपिक्टेटस की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे हमें बहुत ही सरल और स्पष्ट तरीके से जीने की कला कुंजी थमाते हैं। वे न तो हवाई बातें करते हैं और न ही हवाई समाधान सुझाते हैं। उनकी समस्त शिक्षा जीवन के ठोस संदर्भों में है और सबसे बड़ी बात यह है कि उस पर अमल करना सबके लिए संभव है। इसीलिए उनके जीवन-सूत्रों पर चलते हुए असंख्य लोगों ने स्वस्थ और सुखमय जीवन का आनंद लिया है। अपनी सीमाओ के बावजूद जीवन की उलझनों के बीच अविचलित रहने की कला सीखनी हो, तो एपिक्टेटस से बेहतर शायद ही कोई मिलेगा।
जीवन की इस जीवंत पाठशाला में आपका हार्दिक स्वागत है।
स्टॉइक दार्शनिकों में एपिक्टेटस का स्थान अन्यतम है। उनका जन्म रोम साम्राज्य के पूर्वी हिस्से में स्थित फ्रीजिया नामक स्थान में सन 55 के आसपास एक दास के रूप में हुआ था। कहा जाता है कि जब वे दास थे, उन्हीं दिनों उन्हें एक ऐसी क्रूर सजा मिली थी जिससे वे लँगड़े हो गए थे। उनकी प्रखर प्रतिभा से प्रभावित होकर स्वामी एपाफ्रोडियस ने उन्हें पढ़ने के लिए रोम भेजा, जहाँ वे गाउस मुओनिअस रुफुस के शिष्य के रूप में प्रसिद्ध हुए। वहीं उन्हें दास होने से छुटकारा मिला। बाद में वे रोम के प्रसिद्ध सम्राट नीरों के मंत्री भी बने। एपिक्टेटस सन 94 तक रोम में पढ़ने का काम करते रहे। जब डॉमिशियन रोम का सम्राट बना, तो उसने अपने यहाँ के सभी दार्शनिकों और विचारकों को देश निकाला दे दिया। उन्हीं दिनों एपिक्टेटस भागकर ग्रीस के नीकापॉलिस नामक शहर में पहुँचे और वहाँ अपना स्कूल खोला। मान्यता है कि एक अनाथ बालक की परवरिश करने के लिए उन्होंने विवाह भी किया।
वहीं सन 135 से 80 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हुई।
एपिक्टेटस एक गँभीर विचारक और तेजस्वी शिक्षक थे। पर उनके हाथ से लिखा हुआ कुछ भी उपलब्ध नहीं है। उनके प्रिय शिष्य एरियन ने अपने शिक्षक के विचारों और संवादों को जिस पुस्तक में संकलिक किया है, उसका नाम है, -द डिस्कोर्सेज’। एपिक्टेटस की विश्व-ख्याति का आधार यही पुस्तक है। इस पुस्तक में खासतौर से इन प्रश्नों पर विचार किया गया है कि जीवन में क्या मूल्यवान है और क्या मूल्यवान नहीं है, कौन-सी चीजें हमारे हाथ में हैं और कौन-सी चीजें नहीं हैं, सुखमय जीवन किसे कहेंगे, इसे कैसे हासिल किया जा सकता है तथा हमें किन चीजों को पाने की कोशिश करनी चाहिए और किन चीजों से दूर रहना चाहिए।
एपिक्टेटस की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे हमें बहुत ही सरल और स्पष्ट तरीके से जीने की कला कुंजी थमाते हैं। वे न तो हवाई बातें करते हैं और न ही हवाई समाधान सुझाते हैं। उनकी समस्त शिक्षा जीवन के ठोस संदर्भों में है और सबसे बड़ी बात यह है कि उस पर अमल करना सबके लिए संभव है। इसीलिए उनके जीवन-सूत्रों पर चलते हुए असंख्य लोगों ने स्वस्थ और सुखमय जीवन का आनंद लिया है। अपनी सीमाओ के बावजूद जीवन की उलझनों के बीच अविचलित रहने की कला सीखनी हो, तो एपिक्टेटस से बेहतर शायद ही कोई मिलेगा।
जीवन की इस जीवंत पाठशाला में आपका हार्दिक स्वागत है।
जीवन मानो एक दावत हो
जीवन को इस तरह ग्रहण करें मानों वह एक दावत हो जिसमें आपको शालीनता के साथ पेश आना है। जब तश्तरियाँ आपकी ओर बढ़ाई जाएँ, आप अपना हाथ बढ़ाएँ और थोड़ा-सा उठा लें। अगर कोई तश्तरी आपके पास से गुजर कर चली गई, तो आपकी प्लेट में जो कुछ मौजूद है, उसका स्वाद लेते रहें। अगर कोई तश्तरी आपके पास नहीं लाई गई है, तो धीरज के साथ अपनी पारी की प्रतीक्षा करें।
संयम, नम्रता और कृतज्ञता के इसी दृष्टिकोण के साथ अपने बच्चों, पति या पत्नी, कैरियर और आर्थिक स्थिति के साथ पेश आएँ। कामना से अधीर होने की, ईर्ष्या करने की और किसी भी चीज के लिए झपटने की जरूरत नहीं है। जब आपका समय आएगा, आपका प्राप्य आपको मिल जाएगा।
संयम, नम्रता और कृतज्ञता के इसी दृष्टिकोण के साथ अपने बच्चों, पति या पत्नी, कैरियर और आर्थिक स्थिति के साथ पेश आएँ। कामना से अधीर होने की, ईर्ष्या करने की और किसी भी चीज के लिए झपटने की जरूरत नहीं है। जब आपका समय आएगा, आपका प्राप्य आपको मिल जाएगा।
प्रत्येक क्षण मूल्यवान है
जो क्षण आपके सामने है, उसकी देखभाल करें।
उसकी बारीकियों में अपने आपको को डुबो दीजिए। जो व्यक्ति आपके सामने है, जो चुनौती आपके सामने है, जो काम आपके सामने है, उस पर ध्यान दें।
इधर-उधर के बहकावों में न पड़ें। अपने आपको अनावश्यक कष्ट न दें।
जीवन क्षणों को मिला कर बनता है। अत: आप अपने को जिस क्षण में पा रहे हैं, उसे पूरी तरह से आबाद करें। तटस्थ दर्शक न बने रहें। हिस्सा लें। अपना सर्वोत्तम पेश करें। नियति के साथ अपनी साझेदारी का सामना करे। बार-बार अपने आपसे सवाल करें: यह काम मैं किस तरह करूँ कि यह प्रकृति की इच्छा के अनुकूल हो ? जो उत्तर फूटता है, उसे ध्यान देकर सुने और काम में लग जाएँ।
यह न भूलें कि जब आपके दरवाजे बंद हैं और आपके कमरे में अँधेरा है, तब भी आप अकेले नहीं हैं। प्रकृति की इच्छा आपके भीतर मौजूद है, जैसे आपकी प्राकृतिक प्रतिभा आपके भीतर मौजूद है। उसके आग्रहों को सुनें। उसके निर्देशों का पालन करें।
जहाँ तक जीने की कला का सवाल है, यह सीधे आपके जीवन से ताल्लुक रखता है। इसलिए आपको प्रतिक्षण सावधान रहना होगा।
लेकिन अधीर होने से कोई लाभ नहीं है। कोई भी बड़ी चीज अचानक नहीं तैयार होती। उसमें समय लगता है।
वर्तमान में आप जीवन को अपना सर्वोत्तम दें : भविष्य अपनी चिंता स्वयं करेगा।
उसकी बारीकियों में अपने आपको को डुबो दीजिए। जो व्यक्ति आपके सामने है, जो चुनौती आपके सामने है, जो काम आपके सामने है, उस पर ध्यान दें।
इधर-उधर के बहकावों में न पड़ें। अपने आपको अनावश्यक कष्ट न दें।
जीवन क्षणों को मिला कर बनता है। अत: आप अपने को जिस क्षण में पा रहे हैं, उसे पूरी तरह से आबाद करें। तटस्थ दर्शक न बने रहें। हिस्सा लें। अपना सर्वोत्तम पेश करें। नियति के साथ अपनी साझेदारी का सामना करे। बार-बार अपने आपसे सवाल करें: यह काम मैं किस तरह करूँ कि यह प्रकृति की इच्छा के अनुकूल हो ? जो उत्तर फूटता है, उसे ध्यान देकर सुने और काम में लग जाएँ।
यह न भूलें कि जब आपके दरवाजे बंद हैं और आपके कमरे में अँधेरा है, तब भी आप अकेले नहीं हैं। प्रकृति की इच्छा आपके भीतर मौजूद है, जैसे आपकी प्राकृतिक प्रतिभा आपके भीतर मौजूद है। उसके आग्रहों को सुनें। उसके निर्देशों का पालन करें।
जहाँ तक जीने की कला का सवाल है, यह सीधे आपके जीवन से ताल्लुक रखता है। इसलिए आपको प्रतिक्षण सावधान रहना होगा।
लेकिन अधीर होने से कोई लाभ नहीं है। कोई भी बड़ी चीज अचानक नहीं तैयार होती। उसमें समय लगता है।
वर्तमान में आप जीवन को अपना सर्वोत्तम दें : भविष्य अपनी चिंता स्वयं करेगा।
चुनाव आपका है
अपने साथ ईमानदारी से पेश आएँ। अपनी शक्तियों और कमजोरियों का सटीक अनुमान लगाएँ। आप जो कुछ होना चाहते हैं, उसके लिए आवश्यक क्षमता क्या आपके पास है ? उदाहरण के लिए, अगर आप पहलवान होना चाहते हैं, तो इसके लिए जरूरी है कि आपके कंधे, पीठ और जाँघे मजबूत हों। अत: अपने आपसे पूछें : सर्वश्रेष्ठ पहलवानों में एक होने के लिए जिस शारीरिक पराक्रम और चपलता की अपेक्षा है, क्या वह मुझमें है ? किसी विशेष क्षेत्र में चैंपियन होने या कोई काम पूर्ण कुशलता के साथ करने की इच्छा रखना एक बात है और वस्तुत: चैंपियन होना तथा वह काम पूर्ण कुशलता से कर पाना दूसरी बात है।
किसी खास क्षेत्र में सफलता पाने के लिए जैसे कुछ खास योग्यताओं की आवश्यकता है, वैसे ही कुछ खास त्याग भी करने होते हैं। अगर आप बुद्धिमता के साथ जीने की कला में पारंगत होना चाहते हैं, तो आपका क्या ख्याल है-क्या आप खाने पीने में अति कर सकते हैं ? आपका क्या ख्याल है, क्या गुस्सा करने और निराश तथा दुखी हो जाने की आम आदत के आगे समर्पण कर सकते हैं ? नहीं। यदि वास्तविक रूप से बुद्धिमान होना आपका लक्ष्य है और आप अपने इस लक्ष्य को पाना चाहते हैं, तो आपको अपने व्यक्तित्व को निखारने के काम में लगना होगा। आपको बहुत-सी अस्वस्थ इच्छाओं और स्वाभाविक मानी जानेवाली प्रतिक्रियाओं पर विजय पानी होगी। आपको यह भी सोचना होगा कि क्या आपके मित्र और सहयोगी कायदे के व्यक्ति हैं ? क्या उनका प्रभाव-उनकी आदतें, मूल्य और व्यवहार-आपको ऊँचा उठाता है या उन क्षुद्र आदतों को मजबूत बनाता है, जिनसे आप छुटकारा पाना चाहते हैं ?
किसी खास क्षेत्र में सफलता पाने के लिए जैसे कुछ खास योग्यताओं की आवश्यकता है, वैसे ही कुछ खास त्याग भी करने होते हैं। अगर आप बुद्धिमता के साथ जीने की कला में पारंगत होना चाहते हैं, तो आपका क्या ख्याल है-क्या आप खाने पीने में अति कर सकते हैं ? आपका क्या ख्याल है, क्या गुस्सा करने और निराश तथा दुखी हो जाने की आम आदत के आगे समर्पण कर सकते हैं ? नहीं। यदि वास्तविक रूप से बुद्धिमान होना आपका लक्ष्य है और आप अपने इस लक्ष्य को पाना चाहते हैं, तो आपको अपने व्यक्तित्व को निखारने के काम में लगना होगा। आपको बहुत-सी अस्वस्थ इच्छाओं और स्वाभाविक मानी जानेवाली प्रतिक्रियाओं पर विजय पानी होगी। आपको यह भी सोचना होगा कि क्या आपके मित्र और सहयोगी कायदे के व्यक्ति हैं ? क्या उनका प्रभाव-उनकी आदतें, मूल्य और व्यवहार-आपको ऊँचा उठाता है या उन क्षुद्र आदतों को मजबूत बनाता है, जिनसे आप छुटकारा पाना चाहते हैं ?
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